Shri Balkrishna Ji

Shri Balkrishna Ji (श्री बालकृष्णलालजी)

श्री बालकृष्णलालजी

‘श्रीबालकृष्णजी बालुवा, सुन्दर भीनले वान रे रसना।

क्मललोचन कमलापति, छबि नहीं को ए समान रे रसना॥

श्रीगुसांईजी के तृतीयलालजी (सुपुत्र) श्री बालकृष्णलालजी का प्राकट्‌य विक्रम संवत्‌ १६०६ में अश्विन कृष्ण अष्टमी के शुभदिन हुआ। श्रीबालकृष्णलालजी के नेत्र, कमल की पंखुड़ियों के समान सुन्दर थे, अतः श्रीगुसांईजी आपश्री को राजीवलोचनकहकर सम्बोधित करते थे।

आपश्री के बहुजी श्रीकमलावती बहुजी हुए। आपके छः लालजी एवं दो बेटीजी हुए।

श्रीबालकृष्णलालजी ने स्वप्नदृष्टास्वामिनीस्तोत्रकी रचना की साथही भक्तिवर्धनी, श्रीसर्वोत्तमस्तोत्र आदि बहुत से ग्रन्थों पर टीका लिखी।