Shri Ghanshayam Ji

Shri Ghanshyam Ji (श्री घनश्यामजी)

श्री घनश्यामजी

श्री घनश्यामजी सींचें सदा, जीवन सकल ब्रह्माण्ड़ रे रसना।

नाथते कृष्णावति तणा, लीला नित्य अखण्ड रे रसना॥

श्रीगुसांईजी के सप्तमलालजी (सुपुत्र) श्री घनश्यामजी का प्राकट्‌य विक्रम संवत्‌ १६२८ में कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी के शुभदिन हुआ। श्रीगुसांईजी आपश्री को ”प्राणवल्लभ” नाम से सम्बोधित करते थे।

श्री घनश्यामजी सदैव श्रीमदनमोहनलाल प्रभु की सेवा में मग्न रहते थे। आपश्री के बहुजी श्रीकृष्णावती बहुजी हुए। आपके दो लालजी एवं एक बेटी जी हुए।

श्री घनश्यामजी ने संस्कृत एवं ब्रजभाषा में अनेक ग्रन्थों की रचनाएं की है साथ ही मधुराष्टकम्‌ पर विशेष टीका भी लिखी है।