Shri Gokulnath Ji

Shri Gokulnath Ji (श्री गोकुलनाथजी)

श्री गोकुलनाथजी

‘श्रीगोकुलपति अति गुणनिधि, तात तणो प्रतिबिंब रे रसना।

श्रीपार्वती पति प्रेमशुं, शोभा सकल कुटुम्ब रे रसना॥

श्री गुसांईजी के चर्तुथलालजी (सुपुत्र) श्री गोकुलनाथजी का प्राकट्‌य विक्रम संवत्‌ १६०८ में मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी के शुभदिन अड़ेल में हुआ। श्रीगुसांईजी आपश्री को ”वल्लभ” नाम से सम्बोधित करते थे।

श्री गोकुलनाथजी पुष्टिमार्ग के चार प्रमुख आचार्यों में से एक है और पुष्टिमार्ग के विस्तार में श्री गोकुलनाथजी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आपश्री श्री महाप्रभुजी का प्रतिबिम्ब स्वरूप है। श्री गोकुलनाथजी के बहुजी श्री पार्वती बहुजी हुए। आपश्री के तीन लालजी एवं एक बेटीजी हुए।

श्री गोकुलनाथजी ने पुष्टिमार्ग के और वैष्णवों के प्रतीक चिन्हमाला (कंठी) और तिलक की तत्कालीन मुगल बादशाह जहांगीर से रक्षा की एवं पुष्टिमार्ग का संरक्षण किया।

श्री गोकुलनाथजी ने मुख्यतः ८४ एवं २५२ वैष्णव वार्ता एवं सेवा भावना नामक ग्रन्थ की रचना की जो वैष्णवों के लिये संजीवनी स्वरूप है साथ ही श्रीमहाप्रभुजी और श्रीगुसांईजी के लगभग सभी ग्रन्थों की टीका भी लिखी।