Shri Raghunath Ji

Shri Raghunath Ji (श्री रघुनाथजी)

श्री रघुनाथजी

‘श्री रघुपति अति गजगति, रतिपति करूं बलिहार रे रसना।

श्रीजानकी जीवन ए सदा, मध्यमणि रत्नमय हार रे रसना॥

श्री गुसांईजी के पंचमलालजी (सुपुत्र) श्री रघुनाथजी का प्राकट्‌य विक्रम संवत्‌ १६११ में कार्तिक शुक्लपक्ष द्वादशी के शुभदिन अड़ेल में हुआ। श्रीगुसांईजी आपश्री को ”रामचन्द्र” नाम से सम्बोधित करते थे।

श्री रघुनाथजी नित्य सर्वप्रथम प्रातः अपने पितृचरण श्रीगुसांईजी के दर्शन करते थे। आपश्री के बहुजी श्री जानकीजी हुए। आपके पाँच लालजी एवं एक बेटीजी हुए।